युवाओं के बीच कोल्हापुरी चप्पल का क्रेज: प्राडा विवाद से मिली नई पहचान

द्वारा संपादित: Екатерина С.

प्राडा के कोल्हापुरी चप्पल विवाद ने युवाओं के बीच इस पारंपरिक भारतीय फुटवियर को लेकर एक नई चर्चा छेड़ दी है। सोशल मीडिया पर युवाओं ने बढ़-चढ़कर अपनी राय रखी और कोल्हापुरी चप्पलों के समर्थन में आवाज उठाई। कई युवाओं ने प्राडा द्वारा कोल्हापुरी चप्पल की डिजाइन को अपनाने को सांस्कृतिक विनियोग बताया, जबकि कुछ ने इसे भारतीय शिल्प कौशल को वैश्विक मंच पर लाने का एक अवसर माना । इस विवाद के बाद, कोल्हापुरी चप्पलों की बिक्री में भारी उछाल आया है, खासकर युवाओं के बीच । ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और स्थानीय बाजारों में कोल्हापुरी चप्पलों की मांग तेजी से बढ़ी है। युवा अब न केवल पारंपरिक अवसरों पर, बल्कि रोजमर्रा के फैशन में भी कोल्हापुरी चप्पलों को शामिल कर रहे हैं। कोल्हापुरी चप्पलें, जो कभी महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित थीं, अब पूरे भारत में युवाओं के बीच लोकप्रिय हो रही हैं । इस विवाद ने कोल्हापुरी चप्पलों के इतिहास और महत्व के बारे में युवाओं को जागरूक किया है। 12वीं शताब्दी से चली आ रही यह हस्तशिल्प कला, आज भी अपनी पहचान बनाए हुए है । युवा पीढ़ी अब इस पारंपरिक शिल्प को बढ़ावा देने और कारीगरों का समर्थन करने के लिए आगे आ रही है। प्राडा विवाद ने कोल्हापुरी चप्पलों को एक नया जीवन दिया है। यह न केवल एक फैशन स्टेटमेंट बन गया है, बल्कि भारतीय संस्कृति और विरासत का प्रतीक भी बन गया है। युवा अब इसे गर्व से पहन रहे हैं और अपनी संस्कृति के प्रति अपना प्रेम व्यक्त कर रहे हैं। इस घटना ने यह भी दिखाया कि सोशल मीडिया युवाओं को अपनी आवाज उठाने और महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक शक्तिशाली मंच प्रदान करता है। कोल्हापुरी चप्पल विवाद युवाओं के लिए एक सबक है कि वे अपनी संस्कृति और विरासत को महत्व दें और उसे बढ़ावा दें।

स्रोतों

  • Devdiscourse

  • Business Standard

  • Mid-Day

  • The Week

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