नाटो के महासचिव मार्क रूट्टे ने भारत, चीन और ब्राजील को रूस के साथ आर्थिक संबंध बनाए रखने पर संभावित द्वितीयक प्रतिबंधों के बारे में चेतावनी दी है। यह चेतावनी इन देशों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करती है, खासकर लैंगिक समानता और महिलाओं के अधिकारों के संदर्भ में। इन देशों की नीतियां न केवल उनकी अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करती हैं, बल्कि महिलाओं और लड़कियों के जीवन पर भी गहरा प्रभाव डालती हैं। रूस के साथ व्यापार संबंधों को बनाए रखने के फैसले से इन देशों में लैंगिक असमानता बढ़ सकती है। उदाहरण के लिए, रूस से सस्ते ऊर्जा स्रोतों का आयात करने से इन देशों की सरकारें नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करने से पीछे हट सकती हैं, जिससे पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा, जो अक्सर प्रदूषण से अधिक प्रभावित होती हैं। इसके अतिरिक्त, इन देशों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और भेदभाव के मुद्दों पर चीन और रूस जैसे देशों का विरोध है, जो लैंगिक समानता के लिए हानिकारक है । अमेरिकी सीनेटर लिंडसे ग्राहम और रिचर्ड ब्लुमेंथल ने रूस के खिलाफ नए प्रतिबंधों का प्रस्ताव रखा है, जिसमें रूसी ऊर्जा आयात पर 500% शुल्क शामिल है । इस तरह के उपायों से रूस पर दबाव बढ़ेगा, लेकिन इससे इन देशों में ऊर्जा की कीमतें भी बढ़ सकती हैं, जिससे गरीब परिवार और विशेष रूप से महिलाएं प्रभावित होंगी, जिन्हें अक्सर घर के बजट का प्रबंधन करना पड़ता है। भारत में, महिलाओं को अक्सर घरेलू ऊर्जा के लिए जलाऊ लकड़ी और अन्य पारंपरिक ईंधन पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे वे वायु प्रदूषण के संपर्क में आती हैं और उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। क्रेमलिन ने इन धमकियों को अप्रभावी बताया है, और दिमित्री पेसकोव ने कहा कि वाशिंगटन की कार्रवाइयां यूक्रेन को युद्ध जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। यह दर्शाता है कि रूस पर प्रतिबंधों का प्रभाव सीमित हो सकता है। हालांकि, यह भी सच है कि इन देशों को लैंगिक समानता के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अधिक प्रयास करने चाहिए। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, कई देश लैंगिक समानता के लक्ष्यों को पूरा करने में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जिनमें ब्रिक्स देश भी शामिल हैं । निष्कर्ष में, भारत, चीन और ब्राजील को रूस के साथ अपने संबंधों पर पुनर्विचार करना चाहिए, न केवल आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से, बल्कि लैंगिक समानता और महिलाओं के अधिकारों के दृष्टिकोण से भी। इन देशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी नीतियां महिलाओं और लड़कियों के जीवन को बेहतर बनाने में योगदान करें, और वे लैंगिक समानता के वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध रहें।
भारत, चीन और ब्राजील के लिए नाटो की चेतावनी: एक लैंगिक परिप्रेक्ष्य
द्वारा संपादित: S Света
स्रोतों
Devdiscourse
Reuters
Time
AP News
Reuters
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