हाल के एक अध्ययन से अंटार्कटिक समुद्री बर्फ़ में चिंताजनक गिरावट का पता चला है, जिसमें 2025 में न्यूनतम 1.87 मिलियन वर्ग किलोमीटर तक पहुँच गया, जो रिकॉर्ड में सातवाँ सबसे कम है। यह 1993-2010 के औसत की तुलना में 8% की कमी दर्शाता है। घटती समुद्री बर्फ़ एक गंभीर मुद्दा है।
थवाइट्स आइस शेल्फ, जिसे "डूम्सडे ग्लेशियर" के रूप में जाना जाता है, ने 1997 से अपने द्रव्यमान का 70% खो दिया है, जिससे लगभग 4.1 ट्रिलियन टन बर्फ़ अमंडसेन सागर में जारी हो रही है। यह नुकसान समुद्री स्तरों को विनियमित करने में बर्फ़ की चट्टानों के महत्व और समुद्री बर्फ़ में कमी के प्रभाव को उजागर करता है। यह गंगा नदी में आने वाली बाढ़ की तरह है, लेकिन इसका प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ेगा।
यह गिरावट अंटार्कटिक पारिस्थितिक तंत्र को भी बाधित करती है, विशेष रूप से सम्राट पेंगुइन और वेडेल सील जैसी प्रजातियों को प्रभावित करती है, जो प्रजनन के लिए स्थिर समुद्री बर्फ़ पर निर्भर हैं। जिस तरह भारत में बाघों को जीवित रहने के लिए जंगल की आवश्यकता होती है, उसी तरह इन जीवों को बर्फ़ की आवश्यकता होती है। अंटार्कटिक समुद्री बर्फ़ में चल रही कमी का बर्फ़ की चट्टान की स्थिरता, वैश्विक समुद्र स्तर और अंटार्कटिक समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और इसे बचाना चाहिए, क्योंकि 'वसुधैव कुटुम्बकम्' - पूरी पृथ्वी एक परिवार है।