वैज्ञानिक अंटार्कटिक महासागर में लवणता में अचानक वृद्धि से चिंतित हैं, जो दशकों से चले आ रहे चलन को उलट रही है। यह परिवर्तन बढ़ते जल तापमान और पानी के नीचे की बर्फ के तेजी से नुकसान से जुड़ा है।
पीएनएएस में प्रकाशित एक अध्ययन में 2015 से 50 डिग्री अक्षांश से नीचे लवणता में तीव्र वृद्धि का पता चला है, जो मौड राइज पोलिन्या के पुन: प्रकट होने के साथ मेल खाता है। अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि यह लवणता मुख्य रूप से बर्फ की चादरों और समुद्री बर्फ के पिघलने के कारण है, जो समुद्र में नमक छोड़ती है। यह प्रक्रिया समुद्र के बढ़ते तापमान से और बढ़ जाती है, जो पिघलने को तेज करती है। अध्ययन संभावित प्रभावों का भी विवरण देता है, जिसमें बर्फ की चादरों का और अस्थिर होना, समुद्री धाराओं में परिवर्तन और एक फीडबैक लूप शामिल है जहां बढ़ी हुई लवणता आगे वार्मिंग में योगदान करती है। यह स्थिति हिमालय की बर्फ के पिघलने की तरह ही चिंताजनक है, जिसका असर भारत की नदियों और कृषि पर पड़ेगा।
शोधकर्ता एस्ट्रेला ओल्मेडो चेतावनी देती हैं कि इस बदलाव के कारण यह क्षेत्र कार्बन डाइऑक्साइड और गर्मी छोड़ सकता है, जो तत्काल राजनीतिक कार्रवाई की महत्वपूर्ण आवश्यकता का संकेत देता है। यह एक गंभीर मुद्दा है जिस पर भारत को भी ध्यान देना चाहिए और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए, क्योंकि इसका प्रभाव हमारे देश पर भी पड़ेगा।